Friday 6 January 2023

आरज़ू 


ओस की बूंदे, हम आँखे है मूंदे 

पड़े हो कही दिन के पहले पहर में 


जमीं का आँचल या फूलों का बिस्तर 

तारों को ओढ़े तुम्हारे शहर में  


चूमूँ कि देखु, या बस मर ही जाऊ 

उल्फत भरी इस निगाह-ओ-नज़र में 


आसां नहीं अब तुझे अपना बना लू 

ज़माने का हुआ मैं गुज़र और बसर में 


होठो से खेलू तेरी जुल्फों में रह लू

आरजू रहेगी अब मरके कब्र में  

Sunday 26 April 2020


नशा भरा है आँगन में

पावन धरती और गगन में

नदी झरने नशे में सागर

बूँद नशे की नशे का गागर

नशा अजर है नशा अमर है

दसों दिशा में नशे के पहर है

जीवन स्वयं है मद  का प्याला

घोल बचपने में सब डाला

प्रेम नशा है राग नशा है

अल्हड़पन बैराग नशा है

धरा नशे में घूम रही है

चंदा के संग झूम रही है

जीवन व्यर्थ यदि नशा नहीं है

मुक्ति मरण निर्वाण यही है 

Saturday 2 September 2017

शुक्र है हम कुफ्फर है तेरी नज़र में 
मार ले हमे अपने ही  शहर में

तेरी अदाओ के कारनामे हर शख़्स कहता है 
तू ही तू है महीनो से खबर में 

घर से निकलो कुछ करना  है तो 
सराये उजड़ गयी सब्र ही सब्र में 

बगैर सोचे क़ज़ा देना मुझे 
वादाखिलाफी कर जाऊ अगर मैं 

बतौर क़ातिल ही आजा मिलने तू 
बड़ी मुश्किल  हो रही है गुजर बसर में 

खंज़र भूलआया है तो भी आजा 
उसी रोज़ मर गए थे हम तेरी नज़र में 

मखमल-ओ-महलो के लिए मयस्सर नहीं हम 
जो मज़ा है राठौड़ सोने का कब्र में 


Monday 24 July 2017

खयालो में ही उससे मिलता हूँ मैं
दरख्तों के साये में जलता हूँ  मैं

रंज-ओ-रुसवाई तो नतीजा-ए-बेक़दरी है
मगर फिर भी होठों को सिलता हूँ मैं

मंजिलो को पहुंचा  है कारवाँ उसका
जानिब-ए -यार पे अब भी चलता हूँ मैं 

अदाओं पे उसकी फिसलता हूँ मैं
 शिकायते है मगर मचलता हूँ मैं

कही रातो में गहरी सिसके ना वो
तो सुबहों में सूरज उगलता हूँ मैं 

दुनिया बेगानी, बेगानो से सम्भलता हूँ मैं
इस खातिर ही रातो में निकलता हूँ मैं

वो शातिर है, बचता है मेरी निगाहो से
निगाहे उसकी, लिए दिल में, उससे मिलता हूँ मैं

Monday 3 April 2017

अनाम के नाम 



 ये कसूर हवाओं का है, जो सुरूर तुम्हारा है ,
चढ़ा हुआ परसो से है , लगता जैसे बरसो से है।  

ये दौर  शायरी का है , ये दौर आशिक़ी का है ,
वो दौर बेबसी का था , ये दौर मौसिक़ी का है। 

जुर्म हुआ आँखों से लबीब , जुर्माना दिल क्यों दे रहा 
इंसाफपसंद सब फ़ना  हो गए, देखो दिल रिश्वत दे रहा। 

 वो सावन हमारा था , हम उसकी घटाए छोड़कर आये है , 
 इज़हार ए मोहब्बत में शिरकत कर तू भी 
लबों को सी कर न बैठ, हम तेरे लिए जमाना छोड़ कर आये है। 

रंगरेजों की बस्ती में , हम दिल भूल कर आये है ,
अली, शहादत  हमें संभालो, हम मुर्दा वापस आये है। 

जो जीवित है  


पीपल की छांव मांगे ना, सागर में नाव मांगे ना
कुछ  होते है वो मस्ताने, दुःखों में भाव मांगे ना।

ठोकर खाकर  चलते है , काँटों के संग में पलते है
जीते जी खुद्दार जिए , मरकर शमशान मांगे ना।

प्रीत में जीत  ये मांगे ना , प्रेयसी के गीत  ये मांगे ना
इकतरफा ही बस रहने दो , सावन में मीत मांगे ना।

तरकश में तीर मांगे ना, नदियों से नीर भी मांगे ना
घावों की तड़प सुहाती है ,संगी पर  पीर ये मांगे ना।

कृष्ण से चीर मांगे ना, श्रीराम से धीर मांगे ना ,
सागर तो मीत है इनका , हनुमान सा बीर मांगे ना।

वायु से प्राण मांगे ना , तरकश और बाण मांगे ना
योद्धा लड़ते है भुजबल से, कभी ढाल कृपाण  मांगे ना।  

Saturday 6 August 2016


रुदन 

कल देखा एक हाड का पुतला
मांस ना उसमे छटाँक था ,
लोगो की खुसफुसाहट में सुना
उसका नाम किसान था।

जिस पर वो संभला गिरा चढ़ता था
बचपन जिसका जहाँ अटका था
उसी तालाब के  बरगद पे
आज कही वो लटका था।

बेवा उसकी रोती थी किधर
कोने में अपनी कुटिया के
बाबा कहना भी सीखा ना था
देखे आंसू उस बिटिया के।

लड़का उसका ना रोया था
धीरज हिव में संजोया था
दिन चढ़ता जाता जेठ का 
सूरज ने भी आपा खोया था

निर्धन लाचार अनपढ़ औरत
ऊपर से दलित भी होती है
जाकर देखो हर तीजे घर में
कोई ना कोई रोती है।

इन कर्ज़ों में दबी लाशों पे
नींवे हमारी लगती है
झोपड़िया ही सिमटती जाती है
भवनों में महफ़िल सजती है।

सुन रुदन आज उस औरत का
अस्तित्व मेरा न गमा जाऊँ
चीखों से सबकी आज यही
ये धरा फटे मैं समां जाऊ।