अनाम के नाम
ये कसूर हवाओं का है, जो सुरूर तुम्हारा है ,
चढ़ा हुआ परसो से है , लगता जैसे बरसो से है।
ये दौर शायरी का है , ये दौर आशिक़ी का है ,
वो दौर बेबसी का था , ये दौर मौसिक़ी का है।
जुर्म हुआ आँखों से लबीब , जुर्माना दिल क्यों दे रहा
इंसाफपसंद सब फ़ना हो गए, देखो दिल रिश्वत दे रहा।
वो सावन हमारा था , हम उसकी घटाए छोड़कर आये है ,
इज़हार ए मोहब्बत में शिरकत कर तू भी
लबों को सी कर न बैठ, हम तेरे लिए जमाना छोड़ कर आये है।
रंगरेजों की बस्ती में , हम दिल भूल कर आये है ,
अली, शहादत हमें संभालो, हम मुर्दा वापस आये है।
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