Monday 3 April 2017

अनाम के नाम 



 ये कसूर हवाओं का है, जो सुरूर तुम्हारा है ,
चढ़ा हुआ परसो से है , लगता जैसे बरसो से है।  

ये दौर  शायरी का है , ये दौर आशिक़ी का है ,
वो दौर बेबसी का था , ये दौर मौसिक़ी का है। 

जुर्म हुआ आँखों से लबीब , जुर्माना दिल क्यों दे रहा 
इंसाफपसंद सब फ़ना  हो गए, देखो दिल रिश्वत दे रहा। 

 वो सावन हमारा था , हम उसकी घटाए छोड़कर आये है , 
 इज़हार ए मोहब्बत में शिरकत कर तू भी 
लबों को सी कर न बैठ, हम तेरे लिए जमाना छोड़ कर आये है। 

रंगरेजों की बस्ती में , हम दिल भूल कर आये है ,
अली, शहादत  हमें संभालो, हम मुर्दा वापस आये है। 

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