Monday 3 April 2017

अनाम के नाम 



 ये कसूर हवाओं का है, जो सुरूर तुम्हारा है ,
चढ़ा हुआ परसो से है , लगता जैसे बरसो से है।  

ये दौर  शायरी का है , ये दौर आशिक़ी का है ,
वो दौर बेबसी का था , ये दौर मौसिक़ी का है। 

जुर्म हुआ आँखों से लबीब , जुर्माना दिल क्यों दे रहा 
इंसाफपसंद सब फ़ना  हो गए, देखो दिल रिश्वत दे रहा। 

 वो सावन हमारा था , हम उसकी घटाए छोड़कर आये है , 
 इज़हार ए मोहब्बत में शिरकत कर तू भी 
लबों को सी कर न बैठ, हम तेरे लिए जमाना छोड़ कर आये है। 

रंगरेजों की बस्ती में , हम दिल भूल कर आये है ,
अली, शहादत  हमें संभालो, हम मुर्दा वापस आये है। 

जो जीवित है  


पीपल की छांव मांगे ना, सागर में नाव मांगे ना
कुछ  होते है वो मस्ताने, दुःखों में भाव मांगे ना।

ठोकर खाकर  चलते है , काँटों के संग में पलते है
जीते जी खुद्दार जिए , मरकर शमशान मांगे ना।

प्रीत में जीत  ये मांगे ना , प्रेयसी के गीत  ये मांगे ना
इकतरफा ही बस रहने दो , सावन में मीत मांगे ना।

तरकश में तीर मांगे ना, नदियों से नीर भी मांगे ना
घावों की तड़प सुहाती है ,संगी पर  पीर ये मांगे ना।

कृष्ण से चीर मांगे ना, श्रीराम से धीर मांगे ना ,
सागर तो मीत है इनका , हनुमान सा बीर मांगे ना।

वायु से प्राण मांगे ना , तरकश और बाण मांगे ना
योद्धा लड़ते है भुजबल से, कभी ढाल कृपाण  मांगे ना।