खयालो में ही उससे मिलता हूँ मैं
दरख्तों के साये में जलता हूँ मैं
रंज-ओ-रुसवाई तो नतीजा-ए-बेक़दरी है
मगर फिर भी होठों को सिलता हूँ मैं
दरख्तों के साये में जलता हूँ मैं
रंज-ओ-रुसवाई तो नतीजा-ए-बेक़दरी है
मगर फिर भी होठों को सिलता हूँ मैं
मंजिलो को पहुंचा है कारवाँ उसका
जानिब-ए -यार पे अब भी चलता हूँ मैं
जानिब-ए -यार पे अब भी चलता हूँ मैं
अदाओं पे उसकी फिसलता हूँ मैं
शिकायते है मगर मचलता हूँ मैं
शिकायते है मगर मचलता हूँ मैं
कही रातो में गहरी सिसके ना वो
तो सुबहों में सूरज उगलता हूँ मैं
तो सुबहों में सूरज उगलता हूँ मैं
दुनिया बेगानी, बेगानो से सम्भलता हूँ मैं
इस खातिर ही रातो में निकलता हूँ मैं
इस खातिर ही रातो में निकलता हूँ मैं
वो शातिर है, बचता है मेरी निगाहो से
निगाहे उसकी, लिए दिल में, उससे मिलता हूँ मैं
निगाहे उसकी, लिए दिल में, उससे मिलता हूँ मैं
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