Saturday 2 September 2017

शुक्र है हम कुफ्फर है तेरी नज़र में 
मार ले हमे अपने ही  शहर में

तेरी अदाओ के कारनामे हर शख़्स कहता है 
तू ही तू है महीनो से खबर में 

घर से निकलो कुछ करना  है तो 
सराये उजड़ गयी सब्र ही सब्र में 

बगैर सोचे क़ज़ा देना मुझे 
वादाखिलाफी कर जाऊ अगर मैं 

बतौर क़ातिल ही आजा मिलने तू 
बड़ी मुश्किल  हो रही है गुजर बसर में 

खंज़र भूलआया है तो भी आजा 
उसी रोज़ मर गए थे हम तेरी नज़र में 

मखमल-ओ-महलो के लिए मयस्सर नहीं हम 
जो मज़ा है राठौड़ सोने का कब्र में 


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